प्रबोधनकाल(Enlightenment) के प्रमुख विचारक
रूसो : प्रबोधनकालीन चिंतको में रूसों का नाम सबसे ऊपर लिया जाता है । वह इस युग का सबसे आधिक प्रभावशाली लेखक व विचारक थे । ‘सोशल-कांट्रेक्ट’एवं ‘ सेकंड डिस्कोर्स ‘ नामक अपनी पुस्तकों में उसने एक प्राकृतिक अवस्था की कल्पना की, जब मनुष्य स्वतंत्र, सामान अवं प्रसन्न था।लोगों ने राज्य का निर्माण किया । राज्य कोई इश्वरी संस्था नहीं है,यह सामान्य इच्छा की अभिव्यक्ति है।
फ्रांसिस बेकन : – ब्रिटिश विद्वानों जिन्होंने शंका,ज्ञान के लिए अनुभव,जैसे विषयों की ब्रिटिश समाज में चर्चा का विषय बनाया । शंका के निवारण लिए अनुभव, तर्क एवं प्रमाण को सवाधिक उपयोगी माना .
कांट :- यह एक प्रसिद्ध जर्मन दार्शनिक था । प्रबोधन परम्परा के लेखकों में इनका महत्वपूर्ण स्थान था । उन्होंने मूलतः प्राकृतिक विज्ञानं में रूचि दिखाई । अपने लेखों में उसने इस बात पर जोर दिया की नैतिक कर्तव्यों को किस प्रकार विज्ञानं पर आधारित किया जाये. इस सम्बन्ध में उसने धर्म और दिव्य ज्ञान को अस्वीकार किया है । समस्यायों के समाधान के संदर्भ में उसका दृष्टिकोण आशावादी था । काँटे के अनुसार,अगर मनुष्य को नैतिक संकल्प के साथ स्वतंत्रता दी जाये,तो वह स्वतंत्र अवश्य हो गया । उसने लोक संप्रभुता का विचार प्रस्तुत किया तथा इस बात पर बल दिया कि राजनितिक व्यवस्था लोक इच्छा पर आधारित होनी चाहिए ।
एक ऐसा युग जिसकी केंद्रीय धारणा ही प्रगति की धारणा थी । इस युग के विचारकों ने धर्म आधारित मान्यताओं को नकारते हुए, दुनिया में होने वाली प्रत्येक घटना के पीछे किसी स्थायी तथा अपरिवर्तनशील प्राकृतिक के नियम को माना है,इससे ज्ञानोदय का निर्माण भी हुआ । यूरोप में 17वीं-18वीं शताब्दी में जो वैज्ञानिक आविष्कार और अनुसंधानों हुए,उनके कारण ना केवल विज्ञानं के क्षेत्र में बल्कि धर्म, राजनीती, अर्थव्यवस्था,दर्शन,साहित्य, आदि अनेक मानवीय क्षेत्रों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का उदय हुआ . इस दृष्टिकोण एवं अवस्था को ही प्रबोधन या ज्ञानोदय( Enlightenment) कहा जाता है ।
ज्ञानोदय( Enlightenment) से इस विश्वास को बल मिला की आतीत के मुकाबले वर्तमान बेहतर है और इस प्रगति से मनुष्य की खुशहाली बढ़ी है । इतिहास में प्रगति संबंधी ये दावे उन परिवर्तनों के मूल्याकन पर आधारित थे जो उनके चारों तरफ हो रहे थे । दरअसल यह एक प्रकार की बौद्धिक क्रांति थी, जिसका आधार पुर्नजागरण,धर्मसुधार आंदोलन,एवं वाणिज्यिक क्रांति ने तैयार किया था । प्रबोधन या ज्ञानोदय (Enlightenment) की इस स्तिथि ने 18वीं शताब्दी के शुरुआत में पश्चिमी दुनिया में हुए विभिन क्रांतिकारी घटनायों जैसे अमेरिकी क्रांति,फ्रांसीसी क्रांति,एवं नेपोलियन के सैनिकअभियान,जिसका दुनिया पर व्यापक असर पड़ा,को प्रेरित किया .
कोपरनिकस, केप्लर,और न्यूटन की वैज्ञानिक खोजों और गैलिलियो द्वारा उनके प्रयोग से यह विश्वास उत्पन हुआ,कि मनुष्य ब्रह्माण्ड की कार्य पद्दति को पूरी तरह समझ सकता है। दरअसल यह कहना कि इन वैज्ञानिको के अविष्कारों के कारण ही प्रबोधन काल या ज्ञानोदय संभव हो सका, तो इसमें कोई अतिशोक्ति नहीं होगी ।
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प्रबोधनकाल के चिंतको ने मानव को तर्क का इस्तेमाल करने के लिए मजबूर किया ।
जहां प्रबोधनकालीन चिंतको ने मानव को धर्म से अलग अपने दृष्टिकोण को विकसित करने के लिए प्रेरित किया। वही उन्होने इस बात का ज़ोर शोर से प्रचार किया की चर्च अंधविश्वास और अज्ञान को बढ़ावा दे रहे है । इसके धर्म सिद्धान्त ऐसे चमत्कारो और रहस्यों पर आधारित थे,जो तर्क से परे थे । इससे धार्मिक संस्थायो और धर्म के प्रति इस धारणा को बल मिला,जब चर्च ने कोपरनिकस की क्रांति से जन्मे उसके नेय चिंतन और विचार के साथ शत्रुतापूर्ण दृष्टिकोण अपनाया।
प्रबोधनकालीन चिंतको ने न सिर्फ मानव की ख़ुशी को प्राथमिकता दी, ब्लकी उसकी भलाई पर भी ज़ोर दिया। मनुष्य को स्वभाव से एक विवेकशील एवं विन्रम प्राणी स्वीकार किया गया । मनुष्य को स्वार्थी धर्माधिकारियों के चुंगल से मुक्त कर तर्कसंगत समाज के निर्माण हेतु प्रयास करने को प्रोत्साहन दिया गया । चिंतको (Enlightenment) ने इस बात जोर दिया की यह संसार एक मशीन की तरह है, जिसका नियंत्रण एवं संचालन कुछ खास नियमों के अनुसार ही होता है। उनका उदेश्य यह था कि व्यक्तियोंको अपने पर्यावरण के प्रति जागरूक होना चाहिए,ताकि वे प्राकृतिक शक्तियों की अपदायों से अपनी रक्षा कर सके .
प्रबोधन काल से हमने क्या सीखा ?
प्रबोधन काल( Enlightenment) से हमने यह जाना कि हर घटना का सम्बंध किसी न किसी रूप से अतीत से होता है।विज्ञानं सम्बन्धी ( Enlightenment) चिंतकों का केन्द्रीय तत्व कार्य- कारण सम्बंध का अध्ययन करने से था । चिंतको ने पूर्व में होने वाली घटनाओं को चिन्हित करने की कोशिश की, कि वर्तमान में होने वाली घटना के पीछे पूर्व की कोई न कोई घटना अवश्य होती है और पूर्ववती घटना के न होने से परवती घटना नहीं पैदा होती । वस्तुतः कारणों की खोज प्राकृतिक एवं सामाजिक वातावरण पर मनुष्य का नियंत्रण बढानें के साधन के रूप में की जाने लगी।
ज्ञानोदेय विचारकों ने प्रयोग एवं परीक्षण पर बल दिया।
मध्ययुग में ईसाईयत का प्रभाव होने के कारण सांसारिक इतिहास की कोइ जगह नहीं थी . चर्च के अनुयायी हमेशा से इंसान को ब्रहमित करते रहते थे । कि ईश्वर द्वारा निर्मित इस दुनिया को मनुष्य नहीं समझ सकता, यह दुनिया मानवीय बुद्धि से परे है । मनुष्य एवं ब्रह्माण्ड के बारे में सत्य का केवल “उद्घाटन “हो सकता है इसलिए उसे केवल पवित्र पुस्तकों के जरिए जाना जा सकता है । “जहां ज्ञान का प्रकाश आलोकित नहीं होता वहां विश्वास की ज्योति से रास्ता सूझता है ।
“यही विश्वास मध्ययुग की विशेषता थी । ज्ञानोदय ( Enlightenment)ने हर उस बात को खारिज कर दिया और दावा किया कि जिन चीजों को तर्क और बुद्धि के प्रयोग से नहीं समझ सकते है, वे मायावी है । ज्ञानोदेय के अनुसार मानव कि बुद्धि इतनी विशाल और असीम होती है, कि मनुष्य ब्रह्माण्ड के रहस्यों को पूरी तरह समझ सकता है । प्रकृति के बारे में हमें पर्वित्र पुस्तकों के माध्यम से नहीं बल्कि प्रयोगों एवं परीक्षाओं के माध्यम से बात करनी चाहिए
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ज्ञान और विज्ञान में तालमेल
प्रबोधनकालीन विचारकों ने ज्ञान को विज्ञानं के साथ जोड़ने पर बल दिया । उनका मानना था,कि प्राकृतिक विज्ञानों को जाने के लिए ज्ञान का होना बहुत जरूरी है । उनके मुताबिक ज्ञान को प्रयोग एवं परीक्षा के योग्य होना चाहिए । जो बोधगम्य हो और मानव मस्तिष्क की पहुंच में हो,ज्ञान की इसी धारणा के आधार पर प्रबोधन चिंतकों ने पराभौतिक अनुमान और ज्ञान में विरोध बताया .
चर्च द्वारा देववाद का प्रचार
सृष्टि या विश्व का निर्माण किसी संजोग का परिणाम न होकर, किसी अनंत देवीय शक्ति ने इससे बनाया एवं अग्रसर किया होगा । फिर भी मानव का सीमित मस्तिष्क इस अनंत को नहीं जान सकता । अपने द्वारा निर्मित कि गई इस सृष्टि के नियमों को संचालित करने के पश्चात ईश्वर न तो इन नियमों एवं न ही मानव के मामले में हस्तक्षेप करेगा ।
प्रबोधनकालीन चिंतको ने विश्व को तर्क और ज्ञान से भर दिया ।
प्रबोधन( Enlightenment) का प्रभाव अत्यंत ही व्यापक था । प्रचलित निरकुंश,स्वेच्छाचारी ,स्वार्थी एवं दमनशील राजस्व के स्थान पर उदार,लोकहितकारी,प्रबुद्ध एवं सभी के कल्याण हेतु राजस्व अस्तित्व में आए । यूरोप में अनेक ऐसे शासक हुए जिन्होंने अपने देश की राजनीती,आर्थिक एवं सामाजिक व्यवस्था को नये विचारकों के अनुसार ढालने की हर संभव कोशिश की. अब शिक्षा का प्रसार,कृषक दासों का उत्थान,साहित्य का विकास,कठोर दंड-विधान में सुधार,निर्धनता उल्मुलन,कानूनों का स्पष्टीकरण आदि जैसे महत्वपूर्ण परिवर्तन होने लगे.
व्यक्तिगत स्वतंत्रता थी, आर्थिक स्वतंत्र को प्रोत्सहान मिला जिसकी अभिव्यक्ति ‘वेल्थ ऑफ नेशंस ‘जैसी पुस्तकों में देखी गई । इससे प्रेरित होकर मुक्त अर्थव्यवस्था का सिद्धांत स्थापित हुआ जो अभी तक लोकप्रिय है. प्रबोधन के उपनिवेशों में प्रसार होने के सकरात्मक परिणाम प्राप्त हुए । औपनिवेशिक जनता अपने शोषण से परिचित थी और अपने आधिकारों के प्रति जागरूक हुई।
अन्त: हम मान सकते है, कि प्रबोधन( Enlightenment) ने यूरोप से शुरू होकर संपुणे विश्व को अपने प्रभाव क्षेत्र में समेट लिया।
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