भारत की प्रचलित प्रथाएँ
विधवा विवाह
❝ भारत में नारी की दशा ख़राब होने के कारण कई कुप्रथाओं ने जन्म लिया जिनमें विधवा प्रथा(tradition) भी शामिल है।नवविवाहित जोड़ा हो और पति की मृत्यु हो जाए तो महिला को तरह-तरह की बातें कही जाती हैं, उस पर अशुभ होने का ठप्पा लगा दिया जाता है और उससे शादी के लिए कोई तैयार नही होता है। यदि किसी विधवा युवती की संतान होती है तो उसका विवाह होना और भी मुश्किल हो जाता है।हालाँकि लार्ड डलहौजी ने स्त्रियों को इस दुर्दशा से सुधार करने हेतु सन् 1856 में विधवा पुनविवाह अधिनियम बनाया। यह श्री ईश्वरचन्द्र विघासागर के प्रयत्नों का परिणाम था।❞
सती प्रथा
❝ इस प्रथा(tradition) को भारत के राजस्थान में सबसे पहले 1822 ई. में बूॅंदी में गैर कानूनी घोषित किया गया। सती कुछ पुरातन भारतीय समुदायों में प्रचलित एक ऐसी धार्मिक प्रथा थी, जिसमें किसी पुरुष की मृत्त्यु के बाद उसकी पत्नी उसके अंतिम संस्कार के दौरान उसकी चिता में स्वयमेव प्रविष्ट होकर आत्मत्याग कर लेती थी।बाद में राजा राममोहन राय के कई प्रयासों से लार्ड विलियम बैंटिक ने 1829 ई. में सरकारी अध्यादेश के माध्यम से इस प्रथा(tradition) पर रोक लगाई।अधिनियम के तहत सर्वप्रथम रोक कोटा रियासत में लगाई।सती प्रथा(tradition) को सहमरण या अन्वारोहण भी कहा जाता है।❞
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पर्दा प्रथा
❝ प्राचीन भारतीय संस्कृति में हिन्दू समाज में पर्दा प्रथा का प्रचलन नही था।भारत में पर्दा प्रथा का आगमन विदेशी आक्रमणकारियों के साथ हुआ। सर्वविदित है कि पर्दा प्रथा पहले मुस्लिम दशों मे शरू हुआ था। लेकिन मध्यकाल में बाहरी आक्रमणकारियों की कुत्सित व लालुप दृष्टि से बचाने के लिए यह प्रथा चल पड़ी, जो धीरे-धीरे हिन्दू समाज की एक नैतिक प्रथा बन गई। ❞
बाल विवाह प्रथा
प्राचीन काल में प्रचलित बाल विवाह में लड़के लड़कियों का शादी बहुत ही कम उम्र में कर दिया जाता था। बाल विवाह केवल भारत में ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व में होते रहे हैं। भारत सरकार ने बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 (Prohibition of Child marriage Act ) 1 नवंबर 2007 को लागू किया।हालाँकि अजमेर के श्री हरविलास शारदा ने 1929 ई. में बाल विवाह निरोधक अधिनियम प्रस्ताव किया, जो शारदा एक्ट के नाम से प्रसिद्व है।
जौहर प्रथा
जौहर क्रिया अधिकांश राजपूत स्त्रियाँ जौहर कुंड को आग लगाकर उसमें स्वयं का बलिदान कर देती थी।ये तब किया जब युद्व में जीत की आशा समाप्त हो जाने जीत की कोई उम्मीद नहीं होती और स्त्रियों को बाह्य आक्रमणकारियों से ख़तरा हो तब स्त्रियाँ हार निश्चित होने पर जौहर ले लेती थी।केसरिया व जौहर दोनों एक साथ होते है तो वह साका कहलाता है। अगर जौहर नही हुआ हो और केसरिया हो गया हो तो वह अर्द्धशाका कहलाता है।
डावरिया प्रथा
डावरिया प्रथा (tradition)राजस्थान में प्रचलित पुरानी प्रथाओं में से एक थी। राजस्थान में अब इस प्रथा(tradition) का समापन पूर्ण रूप से हो चुका है। यह प्रथा राजा-महाराजाओं और जागीरदारों में प्रचलित थी। डावरिया प्रथा में राजा-महाराजा और जागीरदार अपनी पुत्री के विवाह में दहेज के साथ कुँवारी कन्याएं भी देते थे, जो उम्र भर उसकी सेवा में रहती थी।
बेगार प्रथा
मूल्य चुकाए बिना श्रम कराने की प्रथा को बेगार कहते हैं। इसमें श्रमिकों की इच्छा के बिना काम लिया जाता है। सामंती, साम्राज्यवादी और अफ़सरशाही प्रायः समाज के कमज़ोर लोगों से बेगार करवाती है। ब्रिटिशकालीन भारत में तो यह आम बात थी।सामन्तों, जागीरदारों व राजाओं द्वारा अपनी रैयत से मुफत सेवाएॅं लेना ही बेगार प्रथा कहलाती थी। ब्राहाम्ण व राजपूत के अतिरिक्त अन्य सभी जातियों को बेगार देनी पड़ती थी। बेगार प्रथा का अन्त राजस्थान के एकीकरण और उसके बाद जागीरदारी प्रथा की समाप्ति के साथ ही हुआ।
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